खाटू श्याम का इतिहास | हारे का सहारा क्यों कहते है?

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित श्री खाटू श्याम जी मंदिर आज जन-जन की आस्था का प्रतिक है। खाटू बाबा से इस मंदिर का पौराणिक महत्व भी अत्यधिक है, इतिहास में ज्ञात तथ्यों के अनुसार खाटू श्याम जी को भगवान श्री कृष्ण के रूप में पूजा जाता है। जयपुर से करीब 80 किमी. की दूरी पर खाटू नामक शहर में निर्मित खाटू बाबा के इस भव्य मंदिर का निर्माण 1000 वर्ष से भी पूर्व हुआ था।

हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत कालीन पांडवो में से एक भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे बर्बरीक के सर को श्री कृष्ण के वरदान स्वरूप श्याम के रूप में पूजा जाता है, आज हम इस लेख में आपको हारे का सहारा बाबा खाटू श्याम हमारा, शीश के दानी श्री श्याम घणी के इतिहास से सम्पूर्ण परिचय करवाएंगे।

खाटू श्याम जी कौन है? संक्षिप्त परिचय

विवरण जानकारी
पौराणिक नाम बर्बरीक
धर्म सनातन
पिता का नाम महाबली घटोत्कच
माता का नाम कामकटंककटा (मोरवी)
प्रमुख अस्त्र तीन अमोघ बाण
दादा का नाम महाबली भीम
जिला सीकर
राज्य राजस्थान, भारत
मंदिर निर्माता रूप सिंह चौहान
निर्माण काल 1027 ईस्वी

खाटू श्याम जी का इतिहास

श्री श्याम बाबा का इतिहास भारत के महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। पहले इनका नाम बर्बरीक था। बर्बरीक महाभारत के महाबलशाली गदाधारी भीम के पौत्र थे, अपने जीवन के बाल्यकाल से ही बर्बरीक साहसी और वीर थे। बर्बरीक ने युद्ध कला अपनी माता मोरवी से सीखी थी।

बर्बरीक (Khatu Shyam Ji) बड़े होकर कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर माँ दुर्गा से वरदान स्वरुप बर्बरीक को तीन अबोध बाणो का वरदान दिया था। इन बाणो में इतनी शक्ति थी की जिस भी लक्ष्य को साधकर इन्हें छोड़ा जाता वह बाण अपना लक्ष्य भेदकर वापस बर्बरीक के पास आ जाते थे। इस कारण बर्बरीक एक महान धनुर्धर बन गए थे, जिनको हराना किसी के भी बल में नहीं था।

जब कौरवों और पांडवो के मध्य महाभारत शुरू हो गया था, तब बर्बरीक ने अपनी माता से युद्ध में शामिल होने की आज्ञा मांगी। बर्बरीक की माता श्री मोरवी अपने पुत्र के बल से भलीभांति परिचित थी। इसलिए मोरवी ने अपने पुत्र से कहाँ की युद्ध में जो भी पक्ष निर्बल हो तुम उसी पक्ष में युद्ध लड़ना।

बर्बरीक का कुरुक्षेत्र पहुँचना

Khatu Shyam Ji यानि बर्बरीक अपनी माता मोरवी से आशीर्वाद प्राप्त करके कुरूक्षेत्र की और निकल पड़े। कुरुक्षेत्र पहुँचकर बर्बरीक ने अपना घोड़ा एक पीपल के वृक्ष के निचे बांध दिया और विश्राम करने लगे। बर्बरीक (Khatu Shyam Ji) को युद्ध क्षेत्र में देखकर दोनों और की सेनाओं में कोतुहल व्याप्त हो गया। रात्रि के समय सैनिक बर्बरीक के पास आये और उनसे पूछा की महाबली आप कौन है और किस पक्ष से युद्ध में शामिल होने आये है।

बर्बरीक – मैं पाण्डु पुत्र महाबली भीम का पौत्र एवं घटोत्कच पुत्र बर्बरीक हूँ, और युद्ध में शामिल होने के लिए आया हूँ।

सैनिक – किन्तु महाबली आपकी सेना कहाँ है और आप किस पक्ष की और से युद्ध में शामिल होने आये है।

बर्बरीक – मुझे किसी सेना की आवश्यकता नहीं है, युद्ध समाप्त करने के लिए मेरे तीन अबोध बाण ही काफी है, और रही बात कौनसे पक्ष की तो मैं निर्बल पक्ष की और से युद्ध करूँगा।

खाटू श्याम जी (बरबरीक) की बात सुनकर सैनिकों में वह चर्चा का विषय बन गए और दोनों और की शिविरों में बर्बरीक की बातें होने लगी की एक ऐसा योद्धा आया जो अपने तीन बाणो से ही युद्ध समाप्त कर देगा।

बर्बरीक का शीशदान एवं खाटू श्याम जी की कथा

बरबरीक की वीरता और उनके धनुर्धारी होने की चर्चा कुरुक्षेत्र में सभी तरफ होने लगी। किन्तु कई लोगों के लिए उनकी अद्भुत क्षमता चिंता का विषय बन गई थी, जब भगवान श्री कृष्ण के पास बर्बरीक की वीरता की बात पहुँची तो उनको तनिक भी समय नहीं लगा की बर्बरीक जब देखेगा की कौरव युद्ध में निर्बल पड़ रहे है तो वह उनके पक्ष में शामिल हो जायेगा। इससे पांडवो की पराजय निश्चित है।

तब श्री कृष्ण ने कूट नीति अपनाने की योजना बनाई और खाटू श्याम जी (बरबरीक) की परीक्षा लेने हेतु निकल गए। भगवान श्री कृष्ण को आते देखकर बर्बरीक ने उनको प्रणाम किया और अपना परिचय दिया।

भगवान श्री कृष्णा – पुत्र बर्बरीक क्या सच में तुम अपने तीन बाणो से युद्ध समाप्त कर सकते हो ? तुम्हारी इस बात पर मुझे तो क्या यहाँ किसी को भी तनिक विश्वाश नहीं है।

बर्बरीक – आप तो सर्वज्ञानी है भगवान ! फिर भी मैं आपको बताता हूँ। मेरे तीनों बाणो में जब मैं पहला बाण अपने लक्ष्य की और छोडूंगा तो वह अपना लक्ष्य चिन्हित करके आ जायेगा, और फिर जब मैं दूसरा बाण छोड़ूगा तो वह बाण अपना लक्ष्य साधकर मेरे पास लौट आएगा। अगर मेरा लक्ष्य इस ब्रह्माण्ड में कही भी छुपा हो तो मेरा तीसरा बाण उस लक्ष्य को साधकर आ जायेगा।

भगवान श्री कृष्णा – पुत्र मुझे तो तुम्हारी बात पर शंका हो रही है। इसलिए तुम ऐसा करो की इस पीपल के सभी पत्तो पर अपना निशाना साधकर अपनी बात को सही सिद्ध करो।

बर्बरीक – प्रभु अगर आपकी यही इच्छा है तो मैं आपकी परीक्षा में जरूर सफल होऊंगा।

बरबरीक ने तुणीर से पहला बाण निकाला और पीपल के पत्तो पर साध दिया, तीर पीपल के सभी पत्तो को चिन्हित कर वापस लौट आया। अब Khatu Shyam Ji (बरबरीक) ने अपना दूसरा बाण भी साध दिया, दूसरे बाण ने पीपल के सभी पत्तो को भेद दिया था, किन्तु वह अभी भी आकाश में घूम रहा था। सभी चिंतन में पड़ गए की बाण वापस बर्बरीक के पास क्यों नहीं लौटा।

बर्बरीक – प्रभु लगता है आप मेरी गहन परीक्षा लेने हेतुं ही आये है, इसलिए तो आपने पीपल का एक पत्ता अपने पैर ने निचे दबा रखा है। प्रभु कृप्या अपना पैर पत्ते से हटाइये अन्यथा मेरा बाण आपने पैर को कही क्षतिग्रस्त ना कर दे।

बरबरीक के इस कथन को सुनकर श्री कृष्ण को बर्बरीक की दिव्य दृष्टि का पता चल गया। श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया और बर्बरीक का दूसरा बाण भी पीपल के उसी पत्ते को भेदता हुआ वापस बर्बरीक के पास आ गया।

अब बारी थी तीसरे बाण की। बर्बरीक ने तीसरा बाण छोड़ा, यह बाण सीधा श्री कृष्ण के गले की ओर गया। यह देखकर सभी सैनिक और बर्बरीक घबरा गए। किन्तु श्री कृष्ण बिल्कुल शांत थे। तीर सीधा श्री कृष्ण के गले के पास रुक गया और श्री कृष्ण ने अपना दिव्य रूप धारण कर लिया।

श्री कृष्ण – बर्बरीक ! तुम सचमुच महान धनुर्धारी हो। किन्तु तुम्हारे वचन के अनुसार तुम निर्बल पक्ष का ही साथ दोगे। कौरव युद्ध में कौरव ही निर्बल होंगे, ऐसा निश्चित नहीं है। तुम युद्ध में ना शामिल होकर धर्म का पालन करोगे।

बरबरीक – प्रभु ! आप सर्वज्ञानी है। मैं आपकी बात मानता हूँ। किन्तु युद्ध में शामिल ना होने का मुझे पछतावा होगा।

श्री कृष्ण – तुम्हें पछतावा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम मुझे अपना शीश दान कर दो। कलयुग में लोग तुम्हारे शीश की पूजा करेंगे और तुम उन्हें विजय दिलाएंगे। तुम्हें “हारे का सहारा” के नाम से जाना जाएगा।

बरबरीक को भगवान श्री कृष्ण की बात मान्य हुई और उन्होंने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को अर्पित कर दिया। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया कि कलयुग में तुम्हारी महिमा अखंड रहेगी।

तभी से बर्बरीक को श्री खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है और उन्हें हारे का सहारा कहा जाता है। कलयुग में उनके भक्तों की रक्षा करते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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